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बातचीत की कला { Learn Conversational Art }

लोगों से संपर्क करने , उनके विचार जानने और उनके अनुभव प्राप्त करने का सबसे अच्छा तरीका है। बातचीत और उसे प्रभावी बनाने के लिए कुछ विशिष्ट गुणों का होना अनिवार्य है।

निश्चित रूप से आप सोचेंगे कि यह क्या कला हुयी । बातचीत में कौन सी ऐसी कलात्मकता या कलाबाजी है। बातचीत तो हम सभी बात करते हैं। बल्कि कहना चाहिए की जबसे हम पैदा हुए है तब से हम बोलते ही तो आये है।  पहले तो रोधोकर  में, चिल्लाकर या हंसकर या इशारों में अपनी बात कहते थे। बाद में सुन सुन कर कुछ शब्द सीखे और फिर बोलना शुरू किया। 
 
 
Learn Conversational Art  बातचीत की कला
 बातचीत की कला  { Learn Conversational Art }


निश्चित रूप से यह सच है कि लोगों से संपर्क करने , उनके विचारों को जानने और उनका अनुभव हासिल करने का सबसे अच्छा तरीका है। इसी प्रकार ,अपनें विचारों , भावो , रुचियों , अरुचियों को व्यक्त करने का एकमात्र सरल माध्यम परस्पर वार्तालाप ही है। परस्पर बातचीत नितांत अनजाने स्थान पर , अजनबी लोगो को पलभर में हमारा मित्र बना देती है। और उनके बारे में धारणा बनाने आदि में हमारी सहायता करती है , साथ ही हमें लोगों के मध्य अपने विचार रखने , सम्मान दिलाने तथा व्यक्तित्व का पूर्ण विकास करने और आत्मविश्वास जागृत करने में भी अनन्य   भूमिका निभाती हैं।
 
 लेकिन इसके बावजूद हम में से कितने ऐसे है जो वास्तव में सही , रोचक  प्रभावशील बातचीत करने की योग्यता रखते है , उसका महत्त्व पहचानते है। और यदि जानते भी है तो उसे उपयोग में लाते है। आमतौर पर तो हम जो कुछ भी हमारे मनमस्तिष्क में है , उसे दूसरे के सामने धड़ल्ले से पेश करना ही अपना कर्तव्य एवं अधिकार समझ कर विचारो को उगल डालते है।

बस यही पर हम चूक कर जाते है। क्योकि हम यह भूल जाते है की बातचीत वास्तव में एक कला है। जिसे सीखने के लीये इच्छा , मेहनत , लगन , ढृढ़ता और निरंतर अभ्यास  आवश्यकता होती है। यह तो हम जानते ही है की बातचीत हमारे सामाजिक जीवन और व्यक्तित्व विकास का अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है। जिसने भी इस रहस्य को जान लिया वह अपने व्यवसाय में ही नहीं अपितु जीवन के  विभिन्न पक्षों में सफलता प्राप्त करता है। 


घबराये नहीं ( Don't Panic ) :


सामान्यतः रोजमर्रा की जिंदगी में बहुत सी ऐसी बाते होती है जिन्हे हम किसी को बताना चाहते , सुनाना चाहते है , साथ ही किसी से उसके बाते सुनकर मनोरंजन और अपने ज्ञान में वृध्दि करना चाहते है। लेकिन अक्सर किसी के सामने आते ही हम घबरा जाते है। संकोच अनुभव करते है। जाने यह बात हम ठीक से सुना सकते है या नहीं। कही सामने वाला व्यक्ति बात सुनकर पीछे उपहास ही न करे। अथवा क्या बात की जाए। ऐसे विचार अक्सर हमारे मन में आकर या तो हमारे होठो पर ताला लगा जाते है अथवा हमारे आत्मविश्वास को रौंदकर इस कदर अधीर बन जाते है की हम जो कुछ भी घबराहट एवं उत्साहहीनता से सरोबार होकर कहते है , वह वास्तव में ही सामने वाले पर कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाता। और हम स्वयं को दुसरो के सामने हीं एवं लज्जित अनुभव करते है। स्वाभाविक  है की सामने वाले व्यक्ति भी तिरस्कार पूर्ण या उपहास जनक भाव से ही हमें ताक कर अलग हो जाता है। 
 

अति आत्मविश्वास से बचें ( Avoid Over Confidence. ) :


इसके विपरीत हम कई बार अत्यधिक आत्मविश्वास के शिकार होकर अपनी बाते ऊचे ऊचे स्वर में बिना किसी के चेहरे का भाव पढ़े , सुनाते ही जाते है। अपनी तारीफों का पुल बांधते ही चले जाते है। जिनमे विराम या ठहराव का तो कही पता ही नहीं होता। साथ ही सामने वाले को बोलने का मौका भी नहीं दिया जाता।

बातचीत के ये दोनों ही तरीके ऐसे है जो लोगो को हमसे दूर करते है और हमें दूसरों के समक्ष प्रभावहीन बनाते है।

ऐसा होना स्वाभाविक भी है क्योकि हमें दोनों ही अवसरों पर बातचीत के मुलभुत सिध्दांतो का पालन नहीं किया। बातचीत के दौरान तीन बातों का ध्यान रखना नितांत आवश्यक है - आपका स्वर , आपके विचार और उन्हें व्यक्त करने के लिए चुने गए शब्द तथा बातचीत के दौरान आपके चेहरे पर आने वाले भाव। ये तीनो बाते आपको क्या बोलना और कैसे बोलना है , जानने में सहायता प्रदान करेगी।   



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अच्छा श्रोता होना आवश्यक है ( It is Necessary To Be a Good Listener ) :


लेकिन बोलने से पूर्व आपको सुनने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। बातचीत की सफलता का रहस्य मुख्यतः अच्छे श्रोता बनने में है। आप अपनी बुध्दिमता , व्यवहार कुशलता और अभ्यास द्वारा एक अच्छे श्रोता बन सकते है।

अपने सामने वाले व्यक्ति की बातों को ध्यान से सुनना , समझना और उसमे रूचि जाहिर करना निश्चय ही एक अच्छे श्रोता की खाश विशेषता है। बातचीत के दौरान चेहरे पर हलकी सी  मुस्कान लिए सामने वाले व्यक्ति की आँखों में देखना , बातचीत में सिर हिलाना और उपर्युक्त समय पर बातचीत के बीच में संगत  व्  समुचित प्रश्न पूछना श्रोता का कर्तव्य है। इससे बोलने  वाले को न केवल यह विश्वास होगा की कोई उसकी बात सुन रहा है , अपितु वह अपनी बातचीत चालू रखने का प्रोत्साहन भी प्राप्त कर सकेगा।
प्रश्न पूछने से सम्बंधित कुछ बातो का ध्यान रखना जरुरी है। महज प्रश्न पूछने के लिए फालतू अथवा बेकार के  प्रश्न न करे। प्रश्न पूरी सावधानी से पूछे ताकि बातचीत के दौरान वक्ता का वाक्य अधूरा ना रहे। और वह महसूस करे की आप उसकी बात में रूचि ले रहे है। प्रश्न ऐसे हो जो बोलने वाले को विचार विकसित करने में सहायता प्रदान करती हो। प्रश्नो के द्वारा व्यक्ति को उस के मन पसंद बिषय पर पूर्ण रूप से विचार विमर्श करने का मौका दे।

व्यक्तिगत बिषय पर प्रश्न पूछने से बचे। है व्यक्ति के शहर , उसके व्यवसाय , परिवार के बारे में हलकी फुलकी जानकारी आदि पर प्रश्न किये जा सकते है। अच्छा है की एक सूचि बना ले जिसके आधार पर प्रश्न पूछकर आप एक सफल श्रोता बन  सकते है।

अच्छा श्रोता ही अच्छा वक्ता  बन सकता है। आप जरा देखिये की किसी  सुनते सुनते आप को स्वयं कितनी बिषय मिल जाएगी जिन पर आप बात कर सकते है। जैसे आप के अविस्मरणीय संस्मरण , कोई मनोरंजक घटना , कोई असाधारण अनुभव , आप की अपनी सफलताओ और उपलब्धियों पर डींगे मारना शायद लोगो को पसंद ना आये , अतः इससे जंहा तक हो सके बचे।
 

स्वर का महत्त्व  ( Importance of Voice ) :


बातचीत में स्वर का , उसके अंदाज का अपना अलग ही महत्त्व है। बातचीत के दौरान स्वर धीमा , स्पष्ट एवं मधुर होना चाहिए। जोर जोर से बोलना अथवा जल्दी जल्दी बोलना असभ्यता की निशानी है। स्वर में दृढ़ता और आत्मविश्वास अनिवार्य है। स्वर में प्रसंगानुसार उतार चढाव , मिठास और गहराई होना आवश्यक है।

बातचीत के लिए चुने गए शब्द शिष्ट होने चाहिए। शब्दों को बार बार पुनरावृत्ति करना उचित नहीं। बातचीत के दौरान शरमना और घबराना काफी हद तक प्रभावशील विचार अभिव्यक्त में खासी अड़चन पैदा कर देती है। अतः घबराये नहीं। बेवजह शब्दों पर जोर न दे। बातचीत में सरलता , सहजता और नम्रता , व्यवहार कुशलता का पुट होना चाहिए। 


मुस्कान ( Smile ):


बातचीत के दौरान, आपके चेहरे के भाव भी बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। इसलिए बातचीत के दौरान हमेशा अपने चेहरे पर हल्की मुस्कान रखें। मुस्कान दोस्ती का प्रतीक है। आपकी मुस्कान दूसरों को आपके करीब लाने के लिए एक मजबूत डोर का   काम करेगी। गंभीर अथवा क्रोधपूर्ण  मुखमुद्रा लोगों को पूर्ण  रूप  से खोलने की मौका नहीं देगी । अतः मुस्कुराने का अभ्यास कीजिये । आत्मविश्वास भरी मुस्कान निश्चित रूप से किसी भी व्यक्ति को सम्मोहित कर सकती है।

मित्रतापूर्ण शिष्ट व्यवहार ( Friendly Manner ) :


बातचीत के लिए इन सब बातों के अलावा ,  कुछ और भी आवश्यक तत्व हैं जिन पर  ध्यान रखा जाना चाहिए। बातचीत आपके व्यक्तित्व का एक अभिन्न अंग है। अतः  बातचीत के साथ साथ , व्यक्तित्व में आवश्यक सुधार लाये।

इस संबंध में अपने व्यवहार को संयमित रखना , विनम्र और मैत्रीपूर्ण बनना  आवश्यक है। लोगों के प्रति सौम्य व्यवहार बातचीत में अतिरिक्त मिठास भर देता  है। बातचीत में चालाकी  करने की कोशिश न करें। सामने वाले की भावना की कद्र  करना अनिवार्य है।
 
बातचीत के दौरान कुछ सावधानियां बरतना भी जरूरी है। -

🌻  बातचीत को आप भाषण समझने की भूल न करें।

🌻 बातचीत को बहस में परिवर्तित न होने  दें।

🌻 बातचीत में बेकारकी मस्केबाजी , चापलूसी बातो का प्रयोग न करें।

🌻  बातचीत में बहुत अधिक गंभीर विषय न लें।

🌻 केवल बात करने के लिए ही  बातचित न करें।

🌻 बेकार ही बोलते रहने वालो का कोई सम्मान नहीं करता। बातचीत का सार्थक , उद्देश्यपूर्ण एवं मनोरंजक होना अनिवार्य है।






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